रफ़ी: कैसी हसीन आज बहारों की रात है
एक चाँद आसमां पे है एक मेरे साथ है
महेंद्र: ओ देनेवाले तूने तो कोई कमी न की
अब किस को क्या मिला ये मुक़द्दर की बात है
रफ़ी: छाया है हुस्न-ओ-इश्क़ पे एक रंग-ए-बेख़ुदी … (2)
आते हैं ज़िंदगी में ये आलम कभी कभी
हर ग़म को भूल जाओ ख़ुशी की बारात है
एक चाँद आसमां पे है एक मेरे साथ है
महेंरा: आई है वो बहार के नग़मे उबल पड़े
ऐसी ख़ुशी मिली है के आँसू निकल पड़े
होठों पे हैं दुआएं मगर दिल पे हाथ है
अब किस को क्या मिला ये मुक़द्दर की बात है
रफ़ी: मस्ती सिमट के प्यार के गुलशन में आ गयी … (2)
महेंद्र: मेरी ख़ुशी भी आप के दामन में आ गयी
भँवरा कली से दूर नहीं साथ साथ है
अब किस को क्या मिला ये मुक़द्दर की बात है
रफ़ी: कैसी हसीन आज बहारों की रात है
एक चाँद आसमां पे है एक मेरे साथ है